- सेवा, शिक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता में रखते हुए हर जरूरतमंद व्यक्ति तक उसका लाभ पहुंचाना।
- व्यक्ति, परिवार और समाज की आर्थित उन्नति के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति के सतत प्रयास करना।
- भारतीय सनातन संस्कृति की पुनर्स्थापना के प्रयास करना और ध्यान एवं साधना के उपक्रम संचालित करना।
- व्यक्ति के नैतिक एवं चारित्रिक विकास पर जोर देना। खान-पान, व्यवहार और पहनावे में संयम और शालीनता को बढ़ावा देना।
- कला, संस्कृति और लोक ज्ञान-विज्ञान का संरक्षण करना। धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भौतिक समृद्धि पर बल देना।
- शरीर, मन, भाव तथा इन्द्रियों पर सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए विविध विधियों और कार्यक्रमों का संचालन करना।
- ध्यान व रूपांतरण के माध्यम से व्यक्तित्व विकास पर जोर देकर प्रत्येक व्यक्ति को जिम्मेदार नागरिक बनाने का प्रयास करना।
- नये पूजा स्थलों, मंदिरों, धामों आदि का निर्माण करना और जीर्ण-शीर्ण पूजास्थलों, मंदिरों आदि का जीर्णोद्धार करना।
- व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए विविध कोर्सेस, वर्कशाॅप, ट्रेनिंग, कार्यशालाएं आदि का आयोजन करना।
- समाज में शांति और संतुलन स्थापित करना और सेवा भावना एवं प्रमोद भावना को विकसित करना।
- समाज में अहिंसा, शांति और सौहार्द स्थापित करना। आहारशुद्धि एवं व्यसन मुक्त जीवनशैली पर जोर देना।
- समाज में अनुशासन, सहयोग, सहिष्णुता, विनम्रता, विश्वास और भाईचारा स्थापित करने का प्रयास करना।
- समाज में व्याप्त कुप्रथाओं, दहेज, मृत्यु भोज, प्रदर्शन, आडंबर, अंधविश्वास, रूढ़िवादिता आदि का उन्मूलन करना।
- आदिवासी अंचलों में विभिन्न जनकल्याणकारी गतिविधियों का संचालन कर उन्हें मुख्य समाज की बराबर खड़ा करना।
- प्रकृति, पर्यावरण और पानी की सुरक्षा के लिए कार्य करना। जल-जंगल-जमीन की प्राकृतिक पारिस्थितिकी को बचाना।
- संपन्न लोगों में विसर्जन की भावना का विकास कर समतामूलक समाज के निर्माण के लिए कार्य करना।
- घर-परिवार और समाज में सत्यं-शिवम-सुंदरम् का संगम स्थापित कर शसक्त राष्ट्र निर्माण में भूमिका प्रदान करना।