सुखी परिवार फाउंडेशन की स्थापना इंडियन ट्रस्ट एक्ट 1882 के तहत 19 सितंबर 2007 को एक गैर सरकारी संगठन के तौर पर की गयी है। सुखी परिवार फाउंडेशन एक राष्ट्रीय स्तर का अलाभकारी संगठन है जिसे आयकर विभाग द्वारा 80जी और 12ए की सुविधा प्राप्त है। संगठन का ध्येय वाक्य है- आपकी खुशी हमारी खुशी-आपका सुख हमारा सुख।
सुखी परिवार फाउंडेशन की मूल भावना है कि मनुष्य अच्छा मनुष्य बने, उसके अंदर मानवीय गुणों का विकास हो, वह नैतिक, चारित्रिक और आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत बने, घर-परिवार, समाज एवं राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य को जाने और निष्ठापूर्वक उसका पालन करे, समष्टि के हित में अपना हित अनुभव करे। हमारा मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को सुखी, खुशहाल और आर्थिक रूप से संपन्न बनाये बिना एक वैभवशाली राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकता। इसलिए हमारा यह उपक्रम व्यक्ति और परिवार से स्वस्थ समाज और स्वस्थ समाज से स्वस्थ राष्ट्र की आधार भूमि है। यही हमारा कार्यक्षेत्र और यही हमारा दर्शन है।
सुखी परिवार फाउंडेशन किसी भी जाति, वर्ग, धर्म, संप्रदाय, भाषा के भेद के बिना हर व्यक्ति के जीवन से जुड़ा एक अभिनव संस्थान है। इसके अंतर्गत समाज के हर वर्ग के लिए सेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य, साहित्य, कला, संस्कृति, आध्यात्मिक उन्नयन, जीवदया और जनकल्याण आदि से संबंधित विभिन्न गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। फाउंडेशन आज राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसा, नैतिकता, सदाचार और स्वस्थ मूल्यों की स्थापना का एक अभिनव उपक्रम बनकर उभरा है। इसके माध्यम से जहां वैचारिक स्तर पर सकारात्मक वातावरण का निर्माण हुआ है वहीं सेवा और परोपकार का कार्य किया जा रहा है।
सुखी परिवार फाउंडेशन का नेतृत्व प्रख्यात आदिवासी जैन संत गणिवर्य डॉ. राजेन्द्र विजयजी महाराज साहब कर रहे हैं। उनके कुशल निर्देशन में एक समतामूलक समाज के निर्माण के लिए एक वृहद अभियान के रूप में कार्य किया जा रहा है। व्यक्ति और परिवार को शैक्षणिक और आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने के साथ-साथ उसके नैतिक और चारित्रिक उन्नयन के प्रयत्न किए जा रहे हैं। ऐसा प्रयास किया जा रहा है कि जो परिवार आर्थिक रूप से वैभव संपन्न हैं वे उन परिवारों की आर्थिक उन्नति के लिए आगे आएं जो आर्थिक रूप से विपन्न या कमजोर हैं। इस नेक पहल से एक ओर वैभवशाली परिवारों में खुशी और वास्तविक आनंद का अवतरण होगा तो वहीं दूसरी तरफ ऐसे परिवार जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं उन्हें अपनी माली हालत सुधरने का सुख मिलेगा। सुख, शांति और संपत्ति की अन्योनाश्रिता का यह भाव समाज को ज्यादा मानवीय, ज्यादा मजबूत और ज्यादा सरस बनाएगा। इससे अंततः हमारा व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज और समाज से राष्ट्र का दर्शन साकार रूप लेगा।