सुखी परिवार जीवदया गौशाला
सुखी परिवार फाउंडेशन द्वारा गुजरात के बड़ोदरा के बलद गांव में सुखी परिवार गौ मंदिर एवं गौशाला की एक सेवामूलक अभिनव गतिविधि प्रारंभ की गई है जो आदिवासी अंचल बलद गांव, कवांट, बोड़ेली, नाथपुरी, नसवाड़ी, रंगपुर आदि विभिन्न गांव-दराजों में बीमार, उपेक्षित एवं अनुपयोगी पशुओं के भरण-पोषण, जीवन-निर्वाह एवं चिकित्सा का प्रमुख केन्द्र बना है। बलद गांव में निर्मित यह गौशाला जीवदया की एक विशद् एवं उपयोगी योजना है जिसमें इन क्षेत्रों के अलावा सुदूर क्षेत्रों से भी पशुओं को लाकर उनकी देखभाल की जाती है और बीमार पशुओं का समुचित इलाज किया जाता है। इस गौशाला द्वारा विभिन्न जगहों से लाये गये बैल एवं अन्य पशु बहुत कम कीमत पर इस क्षेत्र के किसानों को वितरित किये जाते हैं। अब तक करीब 25,000 बैल इस क्षेत्र के किसानों को न्यूनतम लागत पर दिये गये हैं जिससे इस क्षेत्र में खेती की संभावनाएं बढ़ी हैं। जो पशु बूचड़खाने में कटने के लिए जा रहे थे उनकी जीवन रक्षा करके एक उपकार का कार्य किया गया है।
इस फाउंडेशन का मुख्य लक्ष्य बीमार एवं उपेक्षित गोवंश को समुचित जीवन-निर्वाह की सुख-सुविधाएं उपलब्ध कराना है। विशेषतः समय पर चारा-पानी एवं अन्य जरूरत का खाद्य-पदार्थ समयबद्ध रूप से उपलब्ध कराना, बीमार पशुओं का इलाज, रहने के लिए शेडयुक्त स्थान, शुद्ध पानी आदि उपलब्ध कराना है। इस वक्त यहां पर लगभग 300 गायें और गोवंश हैं।
फाउंडेशन द्वारा संचालित इस गौशाला से प्रतिदिन जो दूध प्राप्त होता है उसे सुखी परिवार फाउंडेशन के तहत चलाये जा रहे विद्यालयों में सरस्वती उपासक विद्यार्थियों को मानसिक एवं शारीरिक पोषण के लिए निःशुल्क उपलब्ध कराया जाता है। इसके अलावा आदिवासी जनजाति समाज की प्रसूता महिलाओं को प्रतिदिन छह महीने तक 200 ग्राम दूध दिया जाता है ताकि महिला और बच्चे को कुपोषण से बचाया जा सके।
इस गौशाला में एकत्रित गोबर, गोमूत्र और गोधूलि में गूगल, औषधीय जड़ी-बूटियां और सुगंधित दृव्य मिलाकर धूप और संभरणी कप आदि निर्मित किये जाते हैं। गाय के गोबर में आरा मशीन का बूरा मिलाकर्र इंधन की लकड़ी और उपले तैयार किये जाते हैं जिनका उपयोग खाना बनाने और अनेक शुभाशुभ कार्यों में जलावन के रूप में किया जाता है। गौशाला की इन विभिन्न गतिविधियों में करीब 50 स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिला है।
गौशाला के प्रमुख उद्देश्य:-
- बीमार, उपेक्षित एवं आवारा पशुओं को आश्रय देना।
- बीमार, उपेक्षित एवं आवारा पशुओं का भरण-पोषण करना।
- बीमार पशुओं के लिए चिकित्सा सुविधा एवं चिकित्सक उपलब्ध कराना।
- बूचड़खानों से पशुओं को मुक्त कराना।
- पुशओं एवं जीव-जंतुओं के प्रति संवेदना एवं अहिंसा का भाव निर्मित करना।
- पशुओं एवं जीव-जंतुओं के लिए समग्र सुविधाओं का नियोजन करना।